राष्ट्र-हन्ता राजनीति (Rastriya-Hanta Rajniti)

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राष्ट्र-हन्ता राजनीति (Rastriya-Hanta Rajniti)

Summary of the Book

आनन्द मार्ग के संस्थापक श्री प्रभात रंजन सरकार ‘आनन्दमूर्ति जी’ ने डाॅ. अवस्थी को आनन्द मार्ग से जोड़ना चाहा तो उन्होने विनम्रतापूर्वक श्री आनन्दमूर्ति जी से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में आने का आग्रह किया। बात पूज्य दीनदयाल जी उपाध्याय तक पहुँची तो उन्होने आनन्दमूर्ति जी से कहा कि यह हमारा अच्छा कार्यकर्ता है। प्रस्तुत पुस्तक ऐसे कार्यकर्ता के भोगे हुए यथार्थ और वर्तमान राजनीति के पड़े हुए कुठाराघातों से आन्दोलित मन की असह्य पीड़ा का वह ज्वालामुखीय-विस्फोट है जिसका उद्देश्य सम्पूर्ण भारत-भूमि के आगोश में ‘नव-सृजन’ की वह पीठिका तैयार करना है जिस पर भारत का पुत्र-समाज अपनी संस्कृति की हरीतिमा बिखेर सके।

दृष्टव्य :

हमारी स्वयं की सत्ता और राष्ट्र एक दूसरे पर आश्रित हंै। हमारा अस्तित्व केवल हमारा नहीं, हमारे संवेदनशील हृदय, मन व मस्तिष्क के विस्तारों का भी है। जिस पर हुआ एक छोटा-सा आक्रमण भीषण परमाणु बम के समान समूचे अस्तित्व का नाश कर देता है।
डाॅ. ब्रह्मदत्त अवस्थी ने विदेशी आघातों और षड्यन्त्रों से सचेत करते हुए, हमें हमारी अस्मिता को बनाये रखने हेतु, अपने जाग्रत-जीवन से निःस्त्रत चेतना का पाँच्चजन्यी उत्स हमें प्रदान किया है।
प्रोफेसर जे.के. मेहता व प्रोफेसर देव  के प्रिय शिष्य डाॅ. अवस्थी ने अपनी जीवनी-शक्ति  से  हम सबको एक अमोघ कवच दिया है जिसको धारण करने के लिये उर्वर मस्तिष्क, उद्वेलित मन व विशाल हृदय का सहज संवेदनशील संस्पर्श चाहिये।

Book Content

पुरश्चरण


1. राष्ट्र? स्वरूप! साधना!! समस्या!!!
2. स्वाभिमान के चरण
3. हमारी मानसिकता
4. आरोपित भ्रान्त विनाशकारी धारणाएँ
5. राष्ट्रीय एकता
6. राष्ट्र-हन्ता राजनीति
7. धर्म, संस्कृति, दर्शन का आह्वान
8. प्रदूषण: कारण और निवारण
9. संविधान के पुनः निरीक्षण की आवश्यकता
10. सामाजिक चेतना में बाधक दोहरा-चरित्र
11. राजनीति और उसकी सही दिशा
12. सत्ता-तंत्रा के शिकंजे से लोकतंत्र को मुक्त करो
13. भारतीय अर्थ-दृष्टि तुला पर
14. हमारे स्वाभिमान को चुनौती: पाकिस्तान
15. राष्ट्रद्रोह: पहिचान और दायरे
16. कषफिष्ले बस रह गये, हिन्दोस्तां लुटता गया
17. धर्मनिरपेक्षता नहीं, एकात्मता
18. ईंट-पत्थरों का नहीं, इंसान का निर्माण करें
19. उपासना-स्थल विधेयक: वोट के लिए गोट
20. धर्म की धरती, धर्मनिरपेक्ष बन गई
30. दम तोड़ता लोकतंत्र
31. मृत्युशय्या पर पड़ा सिसकता लोक
32. मिटते दल और उभरते गिरोह
33. हलो, हाय से आक्रांत हिन्दी भाषा

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