चाणक्य जाग उठो (Chankaya Jaag Uthoo)

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चाणक्य जाग उठो (Chankaya Jaag Uthoo)

Summary of the Book

चाणक्य केवल लम्बी चोटी वाले किसी कुरूप-ब्राह्मण का नाम नहीं, राजनीति को समर्पित किसी कूटनीतिज्ञ का नाम नहीं और न ही चन्द्रगुप्त के जन्मदाता किसी तपस्वी-शिक्षक का नाम है। चाणक्य तो प्रत्येक व्यक्ति में बैठी हुई उस मूलभूत-सत्ता का नाम है जो सृष्टि की प्रत्येक इकाई का रक्षक है, पोषक है और संवर्धक भी। वह भूमि, जन और संस्कृति के संघात से उपजी राष्ट्र रूपी सत्ता का प्राण भी है। राष्ट्र-हित उसके लिए सदैव सर्वोपरि है।

डाॅ. ब्रह्मदत्त अवस्थी जी के इस निबन्ध-संग्रह में प्रत्येक शब्द, प्रत्येक वाक्य, प्रत्येक भाव और प्रत्येक विचार व्यक्ति के अन्तस में बैठ उसकी सत्ता को झकझोरता है और सहòों-सूर्यों की अनन्त अलौकिक-शक्ति उसमें उतार अलसाई पलकों को धीरे-धीरे खोलता है तब सृष्टि का कण-कण कह उठता है  चाणक्य जाग उठो।

दृष्टव्य

चेतना के स्तर पर जब स्नेहिल चोट पड़ती है तब अन्तस् की अटकी पंखुड़ियाँ खिल उठती हैं और व्यक्ति होने का मर्म समझ में आने लगता है।

जिन लोगों ने डाॅ. अवस्थी के जीवन को नजदीक से नहीं देखा उनके  मन में उनके प्रति एक विशेष-धारणा हो सकती है, इस पुस्तक के लेख उनकी उस विशेष-धारणा से तो परिचय करवाते ही हैं साथ ही साथ उनके मानवता से परिपूर्ण हृदय के उस विशाल पटल पर उतारते भी हैं जहाँ व्यक्ति-व्यक्ति में, बच्चे-बच्चे में कहीं कोई भेद नहीं होता।

कभी-कभी मन मे विचार आता है कि मैं इस पुस्तक को क्यों पढूँ? यह मेरे किस काम की? पर इस विराट कृति को पढ़ने के बाद अद्भुतरूप से जो कुछ अन्दर घटित होने लगता है वह हजारों प्रतिध्वनियाँ आकाश में गुँजाता है कि  इसे मैं नहीं पढ़ता तो कौन?

अभिमत वार्षिक बैठक चल रही थी। देश-विदेश्

हैदराबाद में विश्व हिन्दू परिषद की अन्तर्राष्ट्रीय वार्षिक बैठक चल रही थी। देश-विदेश से पधारे 400 से अधिक विद्वान राष्ट्र-साधना में लगे महानुभावों, सन्तों, विचारकों के बीच राष्ट्रीय-महत्व के विषयों पर चर्चा हो रही थी तभी माननीय अशोक सिंहल जी ने डाॅ. ब्रह्मदत्त अवस्थी को अपने विचार व्यक्त करने को कहा।

डाॅ. अवस्थी ने अपने विचारों से विषयवस्तु को इस तरह रखा कि सभी लोग उनके सुझाव पर सहमत हो गए। ऐसी है उनकी भाषण शैली व विषय सम्बन्धी ज्ञान की गहराई।

प्रोफेसर कमल किशोर गुप्त

कानपुर

ब्रह्मदत्त अवस्थी यह मेरे लिए एक व्यक्ति विशेष का नाम नहीं अपितु एक पवित्रा विचार प्रवाह का नाम है। इस प्रवाह की धारा बहुत तेज है पर इसका अन्तरंग बहुत गहरा और बहुत शान्त है। विद्वत्ता, दृढ़ता, मधुरता और विनम्रता का विलक्षण संगम है उनके जीवन में परन्तु जीवन-मूल्यों पर कहीं कोई समझौता नहीं।

ओंकार भावे

अन्तर्राष्ट्रीय संयुक्त महामन्त्री

विश्व हिन्दू परिषद

जिस प्रकार एक ही श्वाँस में उच्चरित सिद्ध गायत्री-मन्त्र मूलाधार से लेकर सहार-चक्र व भू-लोक से लेकर अनन्त-लोक तक की निर्बाध-यात्रा पूरी करता है उसी प्रकार मेरे पूज्य पिताश्री डाॅ. ब्रह्मदत्त जी अवस्थी समस्त चक्रों व लोकों को अपने में आत्मसात् किए हुए अपनी जीवनावधि के गायत्री-मन्त्र की कठोरतम साधना कर अपनी निर्बाध-यात्रा पर चलते हुए, अनन्त शक्तियों का स्वामी स्वयं को नहीं वरन् इस विराट्-समाज को बना रहे हैं।

डाॅ. प्रभाकर कुमार अवस्थी

राणा शिक्षा शिविर (स्नातकोत्तर) महाविद्यालय

पिलखुवा, पंचशीलनगर (हापुड़)


 

पाञ्चजन्य, शिवओम अम्बर, तारीखः 12/8/2012

डाॅब्रह्मदत्त अवस्थी की चेतना और चिन्तना में राष्ट्र का निवास है, उसकी हित कामना उनकी श्वास-प्रश्वास का सहज कर्म है और शक्ति भर उसकी प्रसुप्त सामर्थ्य जगाने का अभियान उनके लिये एक याज्ञिक अनुष्ठान की तरह है। इसी प्रक्रिया में उनकी अनेकानेक पुस्तकें आकार पाती रही हैं। उनके उद्बोधक विचारों की वाहिका अभिनव कृति है 'चाणक्य जाग उठो'। 'लेखकीय' की प्रस्तुत पंक्तियां इस पुस्तक की सृजन-प्रक्रिया के बीज रूप में विराजमान उस भावोद्वेलन को संकेतित करती हैं जो डाॅ. ब्रह्मदत्त अवस्थी को बढ़ती उम्र के इस सोपान पर भी निरन्तर क्रियाशील रखता है - 'आज राष्ट्र का भाव लुप्त है। राष्ट्र का विराट पुरुष-जिसे अरविन्द ने पूजा, जिसे बंकिम ने आराधा, जिसके लिये वन्दे मातरम् कह भगत सिंह ने फांसी का फन्दा चूमा, चन्द्रशेखर आजाद ने स्वयं अपना बलिदान दिया- वह विराट कहीं खोजे नहीं मिलता। जिसकी चेतना को सूर और कबीरा ने, जिसकी भावना और धारणा को तुलसी और मीरा ने, जिसकी धड़कन और सिहरन को प्रसाद और निराला ने, जिसकी अस्मिता को द्विवेदी और मैथिली ने गाया, गुनगुनाया, जन-जन में बिठाया उस विराट् को आज की राजनीति ने गहरी नींद सुला दिया।' डाॅ. ब्रह्मदत्त अवस्थी की मान्यता है कि चाणक्य अर्थात उच्च आदर्शों को समर्पित विचारशील व्यक्तित्वों का समुदाय यदि जागकर आगे बढ़े तो समूचे समाज में जागरण की तीव्र लहर व्याप्त हो जायेगी, उसे दिशाबोध उपलब्ध हो जायेगा और वह राष्ट्र को परम वैभवमय बनाने के पथ पर आगे बढ़ सकेगा।

 सिसकती राष्ट्र-अस्मिता, त्वदीयाय कार्याय, भारत की वैश्विक भूमिका, राष्ट्र-चेतना और राष्ट्र-रक्षा आदि उनके विविध निबन्धों के शीर्षक ही अपनी अन्तर्वस्तु को ज्ञापित करते हुए हर विचारशील को उनके अध्ययन के लिये प्रेरित करते हैं। अवस्थी जी की भाषा में एक वेगवती स्रोतस्विनी का प्रवाह है। वह मन-प्राण को आन्दोलित करते हुए हमारे चित्त में स्व-बोध को जगाती है, अपने आप पर गर्व करना सिखाती है। भू-राष्ट्रवाद की अवस्थी जी की अवतारणा अभिनव है और सहज ही ध्यान आकर्षित करती है - 'फूंक एक ही है किन्तु ध्वनि शंख की अलग है, बीन की अलग है और सीटी की अलग है। इसका प्रभाव भी अलग है, इसका गुण भी अलग है। प्रभु की चेतना भी इसी प्रकार सभी भौगोलिक इकाइयों (देशों) में संचरित होती हुई बाहर फूटती है तो अपनी पहचान और अपनी गुणवत्ता ले अलग-अलग देशों के अनुरूप प्रगट होती है।....... सृष्टि में संचारित होती हुई प्रभु-चेतना का दिव्यतम स्वरूप हिन्दुस्थान में प्रकट दिखाई पड़ता है।'

 

 

डॉ. ब्रह्मदत्त अवस्थी, लेखक व श्री प्रताप वैश्य जी, प्रकाशक, नार्दर्न बुक सेंटर, नई दिल्ली से

पुस्तक जाग उठो पर विमोचन के उपरांत हस्ताक्षर कराते हुए प्रोफेसर हदय नारायण सिंह जी

 

    व्यक्ति के कृतित्व का सम्यक् आकलन उसके व्यक्तित्व पर दृष्टि डाले बिना संभव नहीं है। वस्तुत: किसी भी शब्द में शक्ति उसके प्रयोक्ता के अन्तर्व्यक्तित्व से उभर कर सम्प्रेषित होती है। विश्व हिन्दू परिषद के अन्तर्राष्ट्रीय संयुक्त महामन्त्री श्री ओंकार भावे ने डाॅ. ब्रह्मदत्त अवस्थी के प्रेरक व्यक्तित्व को इस प्रकार शब्दायित किया है - 'ब्रह्मदत्त अवस्थी - यह मेरे लिये एक व्यक्ति विशेष का नाम नहीं अपितु एक पवित्र विचार प्रवाह का नाम है। इस प्रवाह की धारा बहुत तेज है, पर इसका अन्तरंग बहुत गहरा और बहुत शान्त है। विद्वत्ता-दृढ़ता, मधुरता और विनम्रता का विलक्षण संगम है उनके जीवन में, परन्तु जीवन-मूल्यों पर कहीं कोई समझौता नहीं।'

   यहाँ स्मरणीय है कि जब डा. ब्रह्मदत्त अवस्थी के अमृत महोत्सव के 'राष्ट्र चेतना के चरण' नामक ग्रन्थ का लोकार्पण करने के लिए श्री कुप्.सी. सुदर्शन पधारे थे, उन्होंने बहुत भाव गद्-गद होकर उनके व्यक्तित्व का अभिनन्दन और कृतित्व का वन्दन किया था। अविराम लोकार्चन, अम्लान चिंतन और अकुंठ सृजन से संयुक्त ऐसा व्यक्तित्व ही जागरण के मन्त्रों का दृष्टा और उद्-गाता हो सकता है। 

शिवओम अम्बर

(पाञ्चजन्य से साभार)

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